सोमवार, 4 अप्रैल 2011

घर


तुम जहाँ भी रहो
 उसे घर
 की तरह सजाते रहो
गुलदान में फूल सजाते रहो
दीवारों पर रंग चढ़ाते रहो
सजे-धजे घर में हाथ-पाँव उग आते हैं
फिर तुम कहीं भी जाओ
भले ही अपने आप को भूल जाओ
तुम्हारा घर! तुम्हारा घर!
तुम्हें ढूँढ कर वापस ले आएगा ।

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