मंगलवार, 29 मई 2012

‘चिर परिचित संगिनी हूँ


चिर परिचित संगिनी हूँ

    यात्रा पर जाने की सारी तैयारी कर चुकी थी । सामान उठाकर मुख्य द्वार तक जाने ही वाली थी कि घर के कोने से एक आवाज़ आयी,“चिर परिचित संगिनी हूँ, मुझे भी साथ ले लो”.कदम यंत्रवत से उस कोने की ओर मुड गए, जहां अनुभव का अथाह सागर, ज्ञान, मनोरंजन, अध्यात्म, संस्कृति, सभ्यता,आचार-विचार आदि कई लहरों को समेटे मुझे पुकार रहा था। जी हाँ, यह मेरी पुस्तकों की दुनिया है । मैंने आलमारी खोल एक पुस्तक को बैग में रख लिया । चार पंक्तियाँ यूँ ही गुनगुना गई………………………………………….
टी.वी.कंप्यूटर के युग में क्यों बिसराएँ
गुज़रते वक्त की हर आवाज़ इनमें सुनें
हर पल कौन हमारे साथ चल सकता है ?
इसलिए बेहतर है कि हम पुस्तक को चुनें !
    सच है मनुष्य ज़िन्दगी भर सीखता है और इस प्रक्रिया में पुस्तकें अहम् भूमिका निभाती हैं । पुस्तकों की परम्परा अत्यंत प्राचीन है । सबसे पहली पुस्तक वेद थे । वेद विदधातु से उद् धृत है जिसका अर्थ ही है ज्ञान’ rigveda में उल्लिखित गायत्री मंत्र आज भी घर-घर में उच्चारित होते हैं, उपनिषद में से ही हमारे राष्ट्रीय प्रतीक का पवित्र वाक्य सत्यमेव जयतेलिया गया । पहले विद्यार्थी गुरुओं से सुन कर ही पाठ याद कर लेते थे जिसे श्रुतिकहा जाता था पर ज्ञान के इस अथाह सागर को याद रखना और फिर पीढ़ी दर पीढ़ी संवाहित करने की आवश्यकता ने पुस्तकों को जन्म दिया । पुस्तकें मनुष्य की सबसे अच्छी मित्र होती हैं । बड़े-बड़े विद्वान,महापुरुष अच्छे पाठक भी रहे हैं  । कहा जाता है कि बादशाह अकबर महान, साक्षर नहीं था पर उसे पुस्तकों का बहुत शौक था उसने एक विशाल पुस्कालय बनवाया और विद्वानों से पुस्तकें पढ़वा कर ज्ञान अर्जित करता था.
आज इस कंप्यूटर, टी.वी के युग में पुस्तकों के पाठक ज़्यादा नहीं हैं ये कहना पूर्णतः सही नहीं है क्योंकि आज भी पढ़ने के शौक़ीन लोगों के घरों को पुस्तकों से सजा देखा जा सकता है । पढ़ने की आदत अगर बचपन से ही विकसित की जाए तो यह उम्र भर साथ रहती है । इसके लिए सही उम्र में अच्छी पुस्तकों का चयन आवश्यक है । इससे बच्चों में ज्ञान वृद्धि के साथ कल्पनाशीलता , रचनात्मकता ,बौद्धिक क्षमता, भाषा ज्ञान ,शब्द भंडार वृद्धि, वर्तनी की शुद्धता, एकाग्रता, धैर्य जैसे कई गुणों का विकास होता है । वैज्ञानिक शोधों से यह स्पष्ट हो गया है कि जिन बच्चों में पुस्तकें पढ़ने की आदत है उनका I .Q . उन बच्चों से अधिक होता है जो अपना समय टी.वी.या वीडियो गेम खेलने में व्यतीत करते हैं । किशोरावस्था में अच्छी पुस्तकें पढ़ने से मार्गदर्शन मिलता है और भविष्य की योजना बनाना आसान हो जाता है । एक उक्ति है एक अच्छी पुस्तक वह है जो आशा के साथ खोली जाए और विश्वास के साथ बंद की जाए”.
    पुस्तकें यात्रा के दौरान, प्रतीक्षारत वक्त में , ऊब के क्षणों में , शौक के रूप में, कई लम्हों में साथी बन जाती हैं । नयी-नयी सभ्यता और विभिन्न संस्कृति से हमारा परिचय कराती हैं, एकरसता और बोझिलता दूर करती हैं, हमारे आत्मिक, सामाजिक, मानसिक विकास में सहायक होती हैं, मस्तिष्क को सोचने की नयी दिशा देती हैं
पुस्तक की सदा उसकी ज़ुबां में ……………………
मैं विश्व की हर आवाज़ को शब्दों की स्याही में डुबोती हूँ.
दिल को छूती, ज्ञान से भरपूर कई विधाओं को संजोती हूँ
मैं पुस्तक हूँ, तुम्हारी चिर परिचित संगिनी,मुझे साथ ले लो……………
शैशव, युवावस्था, प्रौढ़ जीवन के विविध रंग उकेरती हूँ
हर तबके, हर संस्कृति, सभ्यता के अनुभव को समेटती हूँ
मैं पुस्तक हूँ ……………………………………..साथ ले लो
मानव, पशु-पक्षी, पर्वत नदियों संग अठखेलियाँ करती हूँ
मुखौटे लगे चेहरों की भी शराफत बन रंगरेलियां रचती हूँ
मैं पुस्तक हूँ……………………………………….साथ ले लो
उत्थान पतन की लहरें,ऐतिहासिक स्मृति से उठाती गिराती हूँ
गीले रेत पर पड़े अपने ही निशाँ बनाती और फिर मिटाती हूँ
मैं पुस्तक हूँ………………………………………….साथ ले लो
आज की, कल की, हर पल की गाथा बन जुबां में सजती हूँ
सार्वभौमिक सत्य, वैज्ञानिक रहस्य का हर लम्हा बुनती हूँ
मैं पुस्तक हूँ ………………………………………साथ ले लो
गंगोत्री से निकली यात्रा को, मैं ही गंगासागर ले चलती हूँ
राजा रानी के किस्सों में समा बच्चों के सपनों में पलती हूँ
मैं पुस्तक हूँ…………………………………………साथ ले लो
कभी सौंदर्य कुदरत का, कभी ज्ञान के सागर में डुबोती हूँ
शब्दों के बादल पर बिठा, भावों की बारिश से भी भिगोती हूँ
मैं पुस्तक हूँ……………………………साथ ले लो.
कभी हंसाती ,कभी रुलाती, कभी संजीदा, विचारमग्न करती हूँ
मस्तिष्क के बंद पट को, चुपके-चुपके अहिस्ता से खोलती हूँ
मैं पुस्तक हूँ…………………………….साथ ले लो
भूल जाना ना मुझे कभी, दुःख सुख हर लम्हे में साथ देती हूँ
जहां कोई नहीं तुम्हारा, सिवा तन्हाई के,अपना हाथ देती हूँ
मैं पुस्तक हूँ ……………………………………….साथ ले लो
इस कंप्यूटर युग में तो जैसे, बनती जा रही मैं डूबती कश्ती हूँ
फट जाऊं, गल जाऊं फिर भी, रहूँ स्मृति में, एक ऐसी हस्ती हूँ
मैं पुस्तक हूँ……………………………साथ ले लो
कहा गया है कि पुस्तकें इनसान की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं। साथ ही ये ज्ञान का खजाना होती हैं, दिमाग का खाद्य होती हैं। एक विचारक ने तो यहां तक कहा है कि  अन्य चीजें बल से छीनी या धन से खरीदी जा सकती हैं मगर ज्ञान सिर्फ अध्ययन से ही प्राप्त किया जा सकता है।" कुछ मां-बाप पढ़ाई के  नाम पर सिर्फ पाठ्य पुस्तकों को ही महत्व देते हैं और अन्य पुस्तकों, पत्रिकाओं या दैनिक समाचार पत्र आदि यदि बच्चे  पढ़ें तो उन्हें रोकते हैं । मगर सच यह है कि ऐसा करके वे बच्चे के विकास की गति को ही अवरुद्ध  करते हैं। बच्चा तो कच्ची मिट्टी के घड़े के सामान है उसे जो रूप हम देंगे वह उसी में  ढल जायेगा।  पठन-पाठन के कुछ लाभ निम्न प्रकार हैं :
पुस्तकों से ज्ञान बढ़ता है : पुस्तकें ज्ञान का भंडार होती हैं । अच्छी व ज्ञानवर्धक पुस्तकें पीढिय़ों से संचित ज्ञान एवं अनुभव को अगली पीढिय़ों तक पहुंचाती हैं। ज्ञान बांटने से बढ़ता है, बच्चे पुस्तक में जो पढ़ते हैं उसे अपने अन्य साथियों के साथ बांटते हैं, जिससे ज्ञान का आदान-प्रदान होकर उनके ज्ञान कोष में वृद्धि होती है। पुस्तकें जिज्ञासा को बढ़ाती भी हैं और उसे शांत भी करती हैं।
विचार क्षमता बढ़ती है : जो कुछ पढ़ा जाता है उस पर चिंतन-मनन स्वाभाविक प्रक्रिया है तथा इससे मस्तिष्क की वैचारिक क्षमता में वृद्धि होती है। कहा भी गया है कि विचारों से ही मनुष्य के जीवन की राह बनती है। बच्चा किस दिशा में बढ़ रहा है यह उसके विचारों से ही संचालित होता है।
तर्क क्षमता बढ़ती है । बच्चे पढ़ते हैं तो उस विषय पर अपने साथियों के साथ या अपने बड़ों के साथ विचार-विनिमय करते हैं, जिससे उनकी तर्क क्षमता का विकास होता है।
आत्मविश्वास बढ़ता है : कहा जाता है कि पंखों की उड़ान से भी बढ़कर हौसलों की उड़ान होती है। अच्छी किताबें बच्चों में आत्मविश्वास जगाती हैं, उनका हौसला बढ़ाती हैं।
अकेलापन अनुभव नहीं होता : पुस्तकों को सबसे अच्छी मित्र माना गया है। आज जब परिवार छोटे-छोटे होने लगे हैं अकेलेपन का संकट बचपन से ही झेलना पड़ रहा है। ऐसे में अच्छी पुस्तकों से बढिय़ा साथी कोई नहीं मिल सकता। अत: अपने बच्चों को पुस्तकों से दोस्ती करने की आदत डालिये।
सही मार्गदर्शन मिलता है : पुस्तकों में असीमित शक्ति छिपी होती है जो प्रेरणा एवं मार्गदर्शन दोनों देती हैं। यही कारण है कि आम भारतीय घरों में भी रामायण, गीता आदि ग्रंथों का नित पाठ करने की परंपरा है। धार्मिक उत्सवों पर भी पाठ रखे जाते हैं। इनका अभिप्राय: यही है कि सद् शिक्षाओं को ग्रहण कर अच्छे रास्ते पर चलकर सच्चे इनसान बना जाए । महापुरुषों की जीवनियां बच्चों के लिए प्रेरणा स्रोत बनती हैं। बच्चे अत्यधिक टीवी देखने एवं कंप्यूटर प्रयोग से होने वाली हानियों से बच जाते हैं।
अभिरुचियों का विकास होता है : हर बच्चे की प्रकृति अलग-अलग होती है जब बच्चा किताबें पढ़ता है तो उसके पात्र विभिन्न प्रकार की रुचियों के स्वामी होते हैं। बच्चे उनसे प्रभावित होकर अपने भीतर छिपी प्रतिभा को बाहर लाने में सहज रूप से सफल होते हैं, जिससे उनके कौशल  उन्नयन में माता-पिता को भी सहायता मिलती है।
सस्ता साधन है : पुस्तकें मनोरंजन और ज्ञानवर्धन का सस्ता एवं सहज सुलभ साधन हैं। अपने आस-पास स्थित पुस्तकालय के सदस्य बनकर नि:शुल्क या नाममात्र शुल्क पर पुस्तकें पढऩे के लिए प्राप्त की जा सकती हैं।
अनुशासन आता है : किताबें पढ़ते हुए एकाग्रता बढ़ती है, जिससे शोर एवं उछल-कूद जैसी शरारतों से बचकर बच्चा अनुशासन में ढलता  चला जाता है। हम जानते हैं कि अनुशासन सफलता की प्रथम सीढ़ी है। सफदर हाशमी ने कहा है :
किताबें करती हैं बातें
बीते जमाने की, दुनिया की, इंसानों की
आज की, कल की, एक-एक पल की
खुशियों की, गमों की, फूलों की, बमों की
जीत की, हार की, प्यार की, मार की,
क्या तुम नहीं सुनोगे इन किताबों की बातें?
किताबें कुछ कहना चाहती हैं तुम्हारे पास रहना चाहती हैं।
    अभिप्राय: यही है कि अपने बच्चों को अच्छी पुस्तकों से मिलवाकर उन्हें जीवन में कुछ बनने को प्रेरित किया जा सकता है। महात्मा गांधी हों या अब्राहम लिंकन जिस रूप में हम उन्हें याद करते हैं इसमें अच्छी पुस्तकों का योगदान सर्वाधिक है।
'आज' 23.04.2021




रविवार, 13 मई 2012

HAPPY MOTHER'S DAY


माँ के आँचल की खातिर तरसता भगवान है


क्या होती है माँ की ज़रूरत पूछो उनसे जो बिन माँ की संतान हैं
माँ की ममता माँ के आँचल की खातिर तो तरसते भगवान हैं


माँ शब्द ऐसा है जिसके बारे में जितना भी लिखा जाये, या पढ़ा जाये उतना ही कम लगता है! सच तो यही है कि माँ के रूप का वर्णन शब्दों में करना असंभव है, कहते हैं कि माँ के स्वरूप को तो स्वयं परम पिता ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी न समझ सके तो फिर एक मुझ सा आम इंसान भला खाक माँ के स्वरूप का वर्णन कर सकेगा! खैर मैं यहाँ माँ के स्वरूप का वर्णन तो नहीं कर सकता, मगर माँ के साथ जुडी अपनी भावनाओं को कुछ हद तक आप सभी के सम्मुख जरूर पेश कर सकता हूँ!
दोस्तों मैंने बहुत सी कहानियां, कवितायें, लेख आदि जिनमे माँ के बारे में बहुत कुछ लिखा हुआ था पढ़े, मगर यह सब पढने के बाद भी आज तक मुझे संतुष्टि नहीं हुई, हर बार मुझे लगता है कि इस कहानी में माँ के बारे यह बात और होनी चाहिए थी, या वह बात भी होनी चाहिए थी! मेरा कहने का मतलब है कि कहानी को पूरा पढने के बाद भी मुझे लगता है कि ये कहानी अभी पूरी नहीं है! यही बात मैं ही क्या अपितु संसार का हर वो शख्स कहेगा जो अपनी माँ से लगाव रखता होगा, माँ के साये में रहता होगा! क्यूँ कि मेरा मानना है कि माँ एक ऐसा शब्द है जिसको परिभाषित करने के लिए समूचे ब्रह्माण्ड में मौजूद शब्दों का प्रयोग भी किया जाये तो भी माँ को परिभाषित नहीं किया जा सकता है, अर्थात यह शब्द भी माँ को परिभाषित करने के लिए कम पड़ेंगे!


संसार के जो लोग माँ को पूरी तरह जानने का दावा करते हैं, कि वो माँ के रूप, माँ की ममता, त्याग, तपस्या, बलिदान, दर्द, प्यार, वात्सल्य, आदि से भली भांति परिचित है या माँ शब्द का अर्थ जानते हैं! मैं उनको उस अबोध बालक की संज्ञा ही दे सकता हूँ ! एक वो बालक जो अपनी माँ के प्रेम में अभिभूत हो माँ की खातिर दूर आसमान के चाँद तारे भी तोड़ कर लाने की बात करता है! क्योकि वो निश्छल मासूम यह नहीं जानता कि उसकी माँ के लिए संसार की सभी बहुमूल्य वस्तुएं मिलकर भी वो ख़ुशी नहीं दे सकती जो एक माँ को अपनी संतान की एक मासूम और प्यारी सी मुस्कान से मिलती है! एक माँ के लिए उसकी संतान भले ही वो बेटा हो या बेटी सिर्फ और सिर्फ सुख या दुःख बस ये ही दो चीजें दे सकती हैं! हम अपनी माँ को चाहे सुख दें या दुःख, मगर हमारी माँ हमे सिर्फ और सिर्फ दुआ ही देती है! माँ संतान के दुःख में दुखी होती है, और ख़ुशी में खुश होती है!


माँ तो एक भाव है! माँ एक भावनात्मक सम्बन्ध का नाम है! माँ त्याग- तपस्या की मूरत है, माँ ही बलिदान का नाम है! माँ एक धरोहर, माँ एक फ़र्ज़ का नाम है! माँ कभी न चुकाए जा सकने वाले एक क़र्ज़ का नाम है! माँ सहनशीलता और उदारता का प्रमाण है! माँ काँटों में भी फूलों का अनुभव होने का नाम है! माँ एक सुखद एहसास का नाम है! माँ दुःख में मिलने वाली सुख की छांव का नाम है! माँ की गोद में लेटने, माँ की गोद में सोने, माँ के आँचल से मिलने वाले आनंद के बारे इससे अधिक क्या कह सकते है कि माँ की ममता का आनंद पाने के लिए देवता तक लालायित रहते हैं! माँ का प्रेम पाने को ही तो त्रेता युग में स्वयं श्री हरि विष्णु ने माँ कौशल्या के गर्भ से राम रूप में जन्म लिया था, देवादि देव महादेव ने भी हनुमान के रूप में माता अंजनी के गर्भ से जन्म लिया था, फिर द्वापर में तो श्री हरि विष्णु ने दो-दो माताओं का प्रेम प्राप्त करने के लिए कृष्ण के रूप में देवकी के गर्भ से जन्म लिया और माता यशोदा की गोद में अपना बचपन बिताया! अगर माँ का प्रेम इतना अद्भुत और अनुपम न होता तो फिर भला ये देवता माँ के प्रेम के लिए के इस कदर लालायित होकर अवतरित होते…?


माँ तो कभी न मिटने वाली भूख और प्यास का नाम है!
माँ ही गीता, माँ ही रामायण, माँ ही बाईबिल व कुरान है!
माँ शब्द में ही निहित सारे तीर्थ, माँ ही तो चारों धाम है!
माँ से शुरू है हर दिन, और माँ से ही हर दिन की शाम है!


जन्म देना और पालना दोनों ही दो अलग-अलग बातें हैं, जन्म देने वाली माँ से महान पालने वाली माँ ही होती है क्यूँ कि एक बच्चे का जन्म होने के बाद से उसकी हर जरुरत को सिर्फ एक माँ ही समझती है, दुनिया में सिर्फ माँ ही एक मात्र ऐसा सम्बन्ध जिसे संसार में कोई भी दूसरा इन्सान नहीं ले सकता! माँ ही तो बच्चे को दुनिया भर के ज्ञान से परिचित कराती है! माँ खुद गीले में सोकर हमे सूखे में सुलाती है! माँ खुद भूखी रहती है मगर अपने बच्चे को पेट भर खाना जरूर खिलाती है, चाहे उसे अपने बच्चे का पेट भरने के लिए इतना भी जटिल परिश्रम क्यों न करना पड़े! कहते हैं कि एक माँ के अगर सौ पुत्र हैं तो वह माँ अकेली ही अपने सौ पुत्रों को भली भांति पाल सकती है क्या पाल लेती है! मगर उसके यही सौ पुत्र जब बड़े हो जाते हैं और माँ बूढी हो जाती है तो यही सौ पुत्र अपनी माँ को दो वक़्त की रोटी तक देने में असमर्थ हो जाते हैं! माँ अपनी संतान की एक मुस्कान की खातिर बड़े से बड़ा जोखिम भी हँसते हुए उठाने से पीछे नहीं हटती, और बड़े होकर वही बच्चा उसी माँ के लिए जाने अनजाने में न जाने कितने दुःख देता है!


बड़े होकर जब उस बच्चे का विवाह होता है तो वही बच्चा अपनी पत्नी आने के बाद माँ को भूल जाता है, उसके पास माँ के लिए वक़्त कम पड़ जाता है! उसे इतनी तक फुर्सत नहीं होती कि उसकी माँ भूखी तो नहीं है, माँ को कोई तकलीफ तो नहीं है, माँ को कोई दुःख तो नहीं है, कहीं उसकी माँ रो तो नहीं रही है! बच्चा बड़े होकर अपनी माँ कि सभी परेशानियों को नजर अंदाज़ कर देता है, ख़ुशी के वक़्त माँ को याद करना भी गवारा नहीं करता वही बच्चा जब बड़े होने पर भी कभी दुखी होकर रोता है तब उसे न तो पत्नी याद आती है न दोस्त, न भाई न बहिन, न धन न दौलत उसे यह कुछ भी याद नहीं आता, उसे याद आती है तो सिर्फ माँ………..सिर्फ और सिर्फ माँ!


माँ से बढकर कोई गुरु नहीं हो सकता, माँ से बढकर कोई भगवान नहीं हो सकता !
गर न हो दुनिया में माँ का स्वरूप, तो फिर दुनिया में कोई इन्सान नहीं हो सकता !!
माँ के प्यार- दुलार और फटकार से कीमती जहान में कोई अरमान नहीं हो सकता !
जो गर न हो धरती पे माँ का अस्तित्व तो फिर आसमान में भगवान नहीं हो सकता !!