रविवार, 13 मई 2012

HAPPY MOTHER'S DAY


माँ के आँचल की खातिर तरसता भगवान है


क्या होती है माँ की ज़रूरत पूछो उनसे जो बिन माँ की संतान हैं
माँ की ममता माँ के आँचल की खातिर तो तरसते भगवान हैं


माँ शब्द ऐसा है जिसके बारे में जितना भी लिखा जाये, या पढ़ा जाये उतना ही कम लगता है! सच तो यही है कि माँ के रूप का वर्णन शब्दों में करना असंभव है, कहते हैं कि माँ के स्वरूप को तो स्वयं परम पिता ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी न समझ सके तो फिर एक मुझ सा आम इंसान भला खाक माँ के स्वरूप का वर्णन कर सकेगा! खैर मैं यहाँ माँ के स्वरूप का वर्णन तो नहीं कर सकता, मगर माँ के साथ जुडी अपनी भावनाओं को कुछ हद तक आप सभी के सम्मुख जरूर पेश कर सकता हूँ!
दोस्तों मैंने बहुत सी कहानियां, कवितायें, लेख आदि जिनमे माँ के बारे में बहुत कुछ लिखा हुआ था पढ़े, मगर यह सब पढने के बाद भी आज तक मुझे संतुष्टि नहीं हुई, हर बार मुझे लगता है कि इस कहानी में माँ के बारे यह बात और होनी चाहिए थी, या वह बात भी होनी चाहिए थी! मेरा कहने का मतलब है कि कहानी को पूरा पढने के बाद भी मुझे लगता है कि ये कहानी अभी पूरी नहीं है! यही बात मैं ही क्या अपितु संसार का हर वो शख्स कहेगा जो अपनी माँ से लगाव रखता होगा, माँ के साये में रहता होगा! क्यूँ कि मेरा मानना है कि माँ एक ऐसा शब्द है जिसको परिभाषित करने के लिए समूचे ब्रह्माण्ड में मौजूद शब्दों का प्रयोग भी किया जाये तो भी माँ को परिभाषित नहीं किया जा सकता है, अर्थात यह शब्द भी माँ को परिभाषित करने के लिए कम पड़ेंगे!


संसार के जो लोग माँ को पूरी तरह जानने का दावा करते हैं, कि वो माँ के रूप, माँ की ममता, त्याग, तपस्या, बलिदान, दर्द, प्यार, वात्सल्य, आदि से भली भांति परिचित है या माँ शब्द का अर्थ जानते हैं! मैं उनको उस अबोध बालक की संज्ञा ही दे सकता हूँ ! एक वो बालक जो अपनी माँ के प्रेम में अभिभूत हो माँ की खातिर दूर आसमान के चाँद तारे भी तोड़ कर लाने की बात करता है! क्योकि वो निश्छल मासूम यह नहीं जानता कि उसकी माँ के लिए संसार की सभी बहुमूल्य वस्तुएं मिलकर भी वो ख़ुशी नहीं दे सकती जो एक माँ को अपनी संतान की एक मासूम और प्यारी सी मुस्कान से मिलती है! एक माँ के लिए उसकी संतान भले ही वो बेटा हो या बेटी सिर्फ और सिर्फ सुख या दुःख बस ये ही दो चीजें दे सकती हैं! हम अपनी माँ को चाहे सुख दें या दुःख, मगर हमारी माँ हमे सिर्फ और सिर्फ दुआ ही देती है! माँ संतान के दुःख में दुखी होती है, और ख़ुशी में खुश होती है!


माँ तो एक भाव है! माँ एक भावनात्मक सम्बन्ध का नाम है! माँ त्याग- तपस्या की मूरत है, माँ ही बलिदान का नाम है! माँ एक धरोहर, माँ एक फ़र्ज़ का नाम है! माँ कभी न चुकाए जा सकने वाले एक क़र्ज़ का नाम है! माँ सहनशीलता और उदारता का प्रमाण है! माँ काँटों में भी फूलों का अनुभव होने का नाम है! माँ एक सुखद एहसास का नाम है! माँ दुःख में मिलने वाली सुख की छांव का नाम है! माँ की गोद में लेटने, माँ की गोद में सोने, माँ के आँचल से मिलने वाले आनंद के बारे इससे अधिक क्या कह सकते है कि माँ की ममता का आनंद पाने के लिए देवता तक लालायित रहते हैं! माँ का प्रेम पाने को ही तो त्रेता युग में स्वयं श्री हरि विष्णु ने माँ कौशल्या के गर्भ से राम रूप में जन्म लिया था, देवादि देव महादेव ने भी हनुमान के रूप में माता अंजनी के गर्भ से जन्म लिया था, फिर द्वापर में तो श्री हरि विष्णु ने दो-दो माताओं का प्रेम प्राप्त करने के लिए कृष्ण के रूप में देवकी के गर्भ से जन्म लिया और माता यशोदा की गोद में अपना बचपन बिताया! अगर माँ का प्रेम इतना अद्भुत और अनुपम न होता तो फिर भला ये देवता माँ के प्रेम के लिए के इस कदर लालायित होकर अवतरित होते…?


माँ तो कभी न मिटने वाली भूख और प्यास का नाम है!
माँ ही गीता, माँ ही रामायण, माँ ही बाईबिल व कुरान है!
माँ शब्द में ही निहित सारे तीर्थ, माँ ही तो चारों धाम है!
माँ से शुरू है हर दिन, और माँ से ही हर दिन की शाम है!


जन्म देना और पालना दोनों ही दो अलग-अलग बातें हैं, जन्म देने वाली माँ से महान पालने वाली माँ ही होती है क्यूँ कि एक बच्चे का जन्म होने के बाद से उसकी हर जरुरत को सिर्फ एक माँ ही समझती है, दुनिया में सिर्फ माँ ही एक मात्र ऐसा सम्बन्ध जिसे संसार में कोई भी दूसरा इन्सान नहीं ले सकता! माँ ही तो बच्चे को दुनिया भर के ज्ञान से परिचित कराती है! माँ खुद गीले में सोकर हमे सूखे में सुलाती है! माँ खुद भूखी रहती है मगर अपने बच्चे को पेट भर खाना जरूर खिलाती है, चाहे उसे अपने बच्चे का पेट भरने के लिए इतना भी जटिल परिश्रम क्यों न करना पड़े! कहते हैं कि एक माँ के अगर सौ पुत्र हैं तो वह माँ अकेली ही अपने सौ पुत्रों को भली भांति पाल सकती है क्या पाल लेती है! मगर उसके यही सौ पुत्र जब बड़े हो जाते हैं और माँ बूढी हो जाती है तो यही सौ पुत्र अपनी माँ को दो वक़्त की रोटी तक देने में असमर्थ हो जाते हैं! माँ अपनी संतान की एक मुस्कान की खातिर बड़े से बड़ा जोखिम भी हँसते हुए उठाने से पीछे नहीं हटती, और बड़े होकर वही बच्चा उसी माँ के लिए जाने अनजाने में न जाने कितने दुःख देता है!


बड़े होकर जब उस बच्चे का विवाह होता है तो वही बच्चा अपनी पत्नी आने के बाद माँ को भूल जाता है, उसके पास माँ के लिए वक़्त कम पड़ जाता है! उसे इतनी तक फुर्सत नहीं होती कि उसकी माँ भूखी तो नहीं है, माँ को कोई तकलीफ तो नहीं है, माँ को कोई दुःख तो नहीं है, कहीं उसकी माँ रो तो नहीं रही है! बच्चा बड़े होकर अपनी माँ कि सभी परेशानियों को नजर अंदाज़ कर देता है, ख़ुशी के वक़्त माँ को याद करना भी गवारा नहीं करता वही बच्चा जब बड़े होने पर भी कभी दुखी होकर रोता है तब उसे न तो पत्नी याद आती है न दोस्त, न भाई न बहिन, न धन न दौलत उसे यह कुछ भी याद नहीं आता, उसे याद आती है तो सिर्फ माँ………..सिर्फ और सिर्फ माँ!


माँ से बढकर कोई गुरु नहीं हो सकता, माँ से बढकर कोई भगवान नहीं हो सकता !
गर न हो दुनिया में माँ का स्वरूप, तो फिर दुनिया में कोई इन्सान नहीं हो सकता !!
माँ के प्यार- दुलार और फटकार से कीमती जहान में कोई अरमान नहीं हो सकता !
जो गर न हो धरती पे माँ का अस्तित्व तो फिर आसमान में भगवान नहीं हो सकता !!

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