सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

दो नया इतिहास

ढलने दो, उम्र की, धूप सारी
ले जाओ बेबसी और, लाचारी ।दो नया इतिहास जग को,तुम सजाओ, फिर क्यारी ।छोड़ दो, बेकार बंधन,जिनसे न,बनता हो जीवन ।तुम उठो, दुनिया उठाओ,फिर खिला दो, एक गुलशन ।जीत लो, विश्वास अपना,नहीं बंदी हैं, हम किसी के ।स्वतंत्र है, जहां में अपने,चूम लो, हर क्षण, हर पल ।जो ना रीते, जो ना बीते,छेड़ दो इक, ऐसा राग ।सान कर दुनिया के दुख को,बांध लो इक, मीठी तान ।छोड़कर, बंधन सुनहरे,सत्य से, पहचान कर लो ।सह लो, दुनिया के दुख को,यूं मुस्कराते, गुनगुनाते ।गुनगुनाना ही पावन है,मुस्कराना ही सृजन है ।फिर बना दो, एक उपवन,फिर बसा दो, एक आंगन ।छोड़कर स्वार्थ सारे,तुमभुला दो, भेद सारे ।फिर नहा लो, भेद सारे,फिर नहा लो, इस सागर में ।आकाश गंगा, करती है स्वागत,दो नया विश्वास विश्व को ।फिर बहा दो, एक गंगा,फिर बहा दो, एक गंगा । 
 

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

कर्मयोगी


कर्मयोगी

फिर से नहीं आता समय, जो एक बार चला गया,
जग में कहो बाधा रहित कब कौन काम हुआ भला ।
बहती नदी सूखे अगर उस पार मैं इसके चलूं ,
इस सोच में बैठा पुलिन पर पार जा सकता भला ॥

किस रीति से क्या काम, कब करना बनाकर योजना, 
मन में लिए आशा प्रबल, दृढ़ जो वही बढ़ जाएगा ।
उसको मिलेगा तेज बल, अनुकूलता सब ओर से,           
वह कर्मयोगी वीर अनुपम साहसी सुख पाएगा ॥

यह वीर-भोग्या जो हृदय-तल में बनी वसुधा सदा,
करती रही आह्वान युग-युग वीर का, पुरूषत्व का ।
कठिनाइयों में खोजकर पथ ज्योतिपूरित जो करें,
विजयी वही होता धरणिसुत वरण कर अमरत्व का ॥
            

बुद्ध का निर्माण

बुद्ध का निर्माण


बोधिवृक्ष के नीचे
बैठ जाने भर से
कोई बुद्ध नहीं बन जाता ।

प्रतिदिन
अनगिनत राही उसके नीचे
बैठते, समय बिताते
अपनी राह चले जाते
पर कोई
बुद्ध नहीं बनता ।

लोककल्याण की भावना,सुयोग और
सद्प्रयास ही
सामान्य जन को
बुद्ध बना जाता है ।