कर्मयोगी
फिर से नहीं आता समय, जो एक बार चला गया,जग में कहो बाधा रहित कब कौन काम हुआ भला ।
बहती नदी सूखे अगर उस पार मैं इसके चलूं ,
इस सोच में बैठा पुलिन पर पार जा सकता भला ॥
किस रीति से क्या काम, कब करना बनाकर योजना,
मन में लिए आशा प्रबल, दृढ़ जो वही बढ़ जाएगा ।
उसको मिलेगा तेज बल, अनुकूलता सब ओर से,
वह कर्मयोगी वीर अनुपम साहसी सुख पाएगा ॥
यह वीर-भोग्या जो हृदय-तल में बनी वसुधा सदा,
करती रही आह्वान युग-युग वीर का, पुरूषत्व का ।
कठिनाइयों में खोजकर पथ ज्योतिपूरित जो करें,
विजयी वही होता धरणिसुत वरण कर अमरत्व का ॥
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