हम एक हैं
जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है
,वह नर नहीं नर
-पशु निरा है, और मृतक समान है ।कौन नहीं जानता ,हम सब भारत की मिट्टी से बने हैं । हम सब एक ही धरती माँ का अन्न खाकर पले हैं । इसी धरती का हमने पानी पिया है । हम सब एक माँ की संतानें हैं, फिर कौन हमें अलग-अलग कर सकता है ?हमारी संस्कृति एक है, विचार एक है । हम सबमें एक ही लहू है । हमारा लक्ष्य एक है, मन एक है और मार्ग एक है; हम सब ऐसे एक जनरूपी सागर की बूँदें हैं जो कभी अलग नहीं हो सकतीं ।एक शरीर में हाथ, पैर, नाक, कान आदि अनेक अंग होते हैं ।सबके अलग-अलग आकार और पृथक-पृथक काम होते हैं । सबसे मिलकर एक शरीर बनता है । शाखाएँ अनेक होते हुए भी वृक्ष एक होता है । व्यष्टि रूप में हम भारतीय हैं । समष्टि रूप में हम सब भारत हैं ।
भारत में रहते हुए हमारा अपना-अपना स्थान है । सब अपने-अपने घर में और अपने-अपने धंधों में व्यस्त हैं । परंतु भारत पर कोई संकट आ पड़े या जब राष्ट्र को आवश्यकता हो, तब उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम का भेद कैसा ? कोने-कोने से भारत के जवान निकल चले आते हैं । एक झंडे के तले एकत्र हो जाते हैं । हममें एक अरब से अधिक का बल है । फिर हमारा कोई क्या बिगाड़ सकता है ? जात-पाँत, भाषा, धर्म, यह सब पूछने की आवश्यकता ही कहाँ है ? हम सब भारतीय हैं, बस यही हमारी पहचान है । यही हमारा परिचय है, यही हमारी पहचान है ।
अपने देश की उन्नति ही हमारी व्यक्तिगत उन्नति है । अपने देश की उन्नति के लिए हमें मिलकर प्रयास करना होगा । हमें चाहिए कि हम मैं-तू का भेद भूल जाएँ और देश की उन्नति में हाथ बटाएँ । देश के निर्माण में प्रत्येक भारतीय के हाथों से ईंट लगनी चाहिए । एक ईंट, दो ईंटें, बहुत सी ईंटें ! ईंट से ईंट मिलकर ही विशाल भवन तैयार हो पाएगा । करोड़ों ईंटें अलग-अलग बिखरी हों, तो बेकार मिट्टी का ढेर होती हैं, सब ईंटें ढंग से मिलकर एक हो जाएँ तो भव्य भवन बनकर तैयार हो जाता है । जब तक हम भारतीय इस भावना को अपनाए रखेंगे, सब मिलकर एक होकर रहेंगे तबतक संसार की कोई भी शक्ति हमारा मार्ग नहीं रोक सकती, हमारे विकास के मार्ग में रोड़ा नहीं बन सकती । हम सब एक थे , एक हैं और एक ही रहेंगे ।
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