जो बादलों में उतर रही गगन से आकर, जो पर्वतों पर बिखर रही है सफ़ेद चादर, वही तो मैं हूँ.... वही तो मैं हूँ.... जो इन दरख्तों के सब्ज़ पत्तों पे डोलती है, जो ओस बनकर हर मौसम को खेलती है, वही तो मैं हूँ.....वही तो मैं हूँ....
सोमवार, 31 दिसंबर 2012
रविवार, 30 दिसंबर 2012
शनिवार, 29 दिसंबर 2012
बुधवार, 26 दिसंबर 2012
जीने का तरीका
क्यों कहें कि संसार बुरा है ?
क्या हम भी अंग नहीं इस संसार के ?
क्यों पड़ें इस बहस में कि ?
आप बुरे हैं
या हम बुरे हैं
जीने आए हैं इस संसार में
जीके ही मरना है सबको, तो
क्यों न बने एक भला मानुष ?
क्यों न जिएँ एक बेहतरीन जीवन ?
क्यों न छोड़ें अपनी अच्छी छाप ?
क्यों न कहें कुछ मीठे वचन ?
क्यों न करें कुछ नेक करम ?
चलिए सोचें, विचारें, शुरू करें जीवन
पथ-प्रदर्शक का न सही पर
पथ-भ्रष्ट का कभी नहीं ।
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