बन कर दीप तुम्हें जलना है
थक न जाएं कदम तुम्हारे
राही तुम्हें और चलना है,
घोर निराशा के अंधकार में
बन कर दीप तुम्हें जलना है ॥
कर्म तुम्हारा केवल पूजा
और न साथी कोई न दूजा,
श्रम-ईश्वर के माथे पर ही
बनकर सुमन तुम्हें चढ़ना है ॥
यह दुनिया तो कर्म क्षेत्र है
जिसमें बस आना-जाना है,
मत घबराओ कभी दुखी न हो
बनकर पवन तुम्हें बहना है ॥
घोर निराशा के अंधकार में
बन कर दीप तुम्हें जलना है॥
तुम्हीं राम हो तुम्हीं श्याम हो
तुम जन-जन के प्राण अमर हो,
आगे कदम बढ़ाते जाओ
कभी नहीं पीछे हटना है ॥
मन वाणी से एक रहो तुम
कभी न खोना अपना संयम,
मातृभूमि के सदा ऋणी हो
इतना ध्यान सदा रखना है ॥
घोर निराशा के अंधकार में
बन कर दीप तुम्हें जलना है॥
बनो त्याग की मूर्ति हमेशा
कुछ तो कर जाओ ऐसा,
जिससे याद तुम्हारी आए
क्योंकि तुम्हें मरकर जीना है ॥
थक न जाएं कदम तुम्हारे
राही तुम्हें और चलना है,
घोर निराशा के अंधकार में
बन कर दीप तुम्हें जलना है ॥