गुरुवार, 14 अक्टूबर 2010

meri bhaashaa; my pride

मेरा प्रथम  पृष्ठ                       

   अपनी लेखनी से यह मेरा प्रथम पृष्ठ है. इस सशक्त माध्यम द्वारा मैं अनुभूत संवेदनाओं,रचनात्मकता और चिंतन-मनन को अभिव्यक्त करने का पूर्ण प्रयास करूंगी.वास्तव में ऐसे ही माध्यम तो एक शिक्षक की शैक्षणिक और परा-शैक्षणिक गतिविधियों तथा उपलब्घियों का दर्पण होते हैं.
   एक भाषा-शिक्षक का जीवन चुनौतियों से परिपूर्ण होता है.उस पर न केवल अपने पाठ्यक्रम को निश्चित समयावधि में पूर्ण कराने की ज़िम्मेदारी होती है,बल्कि विद्यार्थियों में नैतिक मूल्यों को विकसित कराने का गुरूतर भार भी उसी को वहन करना होता है. समाज उससे शुद्ध आचरण-व्यवहार के साथ-साथ शुद्ध उच्चारण व लेखन की भी अपेक्षा करता है.तो आइए, इन चुनौतियों को स्वीकार करते हुए अपने प्रिय विद्यार्थियों के समक्ष ऐसे उदाहरण बनें कि वे हमसे जीवन-मूल्य सीख सकें.

यथा-
 
 हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती 

       स्वयंप्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती 

 अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो,

       प्रशस्त पुण्य पंथ हैं - बढ़े चलो बढ़े चलो।
 असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी।

       सपूत मातृभूमि के रुको शूर साहसी।

 अराति सैन्य सिंधु में - सुबाड़वाग्नि से जलो,

       प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो बढ़े चलो।
धन्यवाद!

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