जो बादलों में उतर रही गगन से आकर,
जो पर्वतों पर बिखर रही है सफ़ेद चादर,
वही तो मैं हूँ.... वही तो मैं हूँ....
जो इन दरख्तों के सब्ज़ पत्तों पे डोलती है,
जो ओस बनकर हर मौसम को खेलती है,
वही तो मैं हूँ.....वही तो मैं हूँ....
बुधवार, 29 दिसंबर 2010
जीवन में नव-गति, नव-लय, नव-ताल,नव-गीत, नव-छंद हों,
ज्योतित हो रोम-रोम जीवन में शीतल-मंद- मकरंद हो ।
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