जो बादलों में उतर रही गगन से आकर, जो पर्वतों पर बिखर रही है सफ़ेद चादर, वही तो मैं हूँ.... वही तो मैं हूँ.... जो इन दरख्तों के सब्ज़ पत्तों पे डोलती है, जो ओस बनकर हर मौसम को खेलती है, वही तो मैं हूँ.....वही तो मैं हूँ....
सोमवार, 31 दिसंबर 2012
रविवार, 30 दिसंबर 2012
शनिवार, 29 दिसंबर 2012
बुधवार, 26 दिसंबर 2012
जीने का तरीका
क्यों कहें कि संसार बुरा है ?
क्या हम भी अंग नहीं इस संसार के ?
क्यों पड़ें इस बहस में कि ?
आप बुरे हैं
या हम बुरे हैं
जीने आए हैं इस संसार में
जीके ही मरना है सबको, तो
क्यों न बने एक भला मानुष ?
क्यों न जिएँ एक बेहतरीन जीवन ?
क्यों न छोड़ें अपनी अच्छी छाप ?
क्यों न कहें कुछ मीठे वचन ?
क्यों न करें कुछ नेक करम ?
चलिए सोचें, विचारें, शुरू करें जीवन
पथ-प्रदर्शक का न सही पर
पथ-भ्रष्ट का कभी नहीं ।
बुधवार, 21 नवंबर 2012
इस बार नहीं( A POEM AGAINST TERRORISM)
इस बार नहीं
इस बार जब वह छोटी सी बच्ची
मेरे पास अपनी खरोंच लेकर आएगी
उसे फु-फु करके नहीं बहलाऊंगा
पनपने दूंगा उसकी टीस को
इस बार नहीं
इस बार जब मैं चेहरों पर दर्द लिखूंगा
नहीं गाऊंगा गीत पीड़ा भुला देने वाले
दर्द को रिसने दूँगा
उतरने दूँगा गहरे
इस बार नहीं
इस बार मैं ना मरहम लगाऊंगा
ना ही उठाऊंगा रुई के फाहे
और ना ही कहूँगा कि तुम आँखें बंद कर लो,
गर्दन उधर कर लो मैं दवा लगाता हूँ
देखने दूँगा सबको
हम सबको
खुले नंगे घाव
इस बार नहीं
इस बार जब उलझनें देखूंगा,
छटपटाहट देखूंगा
नहीं दौडूँगा उलझी डोर लपेटने
उलझने दूँगा जब तक उलझ सके
इस बार नहीं
इस बार कर्म का हवाला दे कर नहीं उठाऊंगा औज़ार
नहीं करूँगा फिर से एक नई शुरूआत
नहीं बनूँगा एक मिसाल एक कर्मयोगी की
नहीं आने दूँगा ज़िंदगी को आसानी से पटरी पर
उतरने दूँगा उसे कीचड़ में टेढ़े मेढ़े रास्तों पे
नहीं सूखने दूँगा दीवारों पर लगा खून
हल्का नहीं पड़ने दूँगा उसका रंग
इस बार नहीं बनने दूँगा उसे इतना लाचार
कि पान की पीक और खून का फ़र्क ही ख़त्म हो जाए
इस बार नहीं
इस बार घावों को देखना है
गौर से
थोड़ा लंबे वक्त तक
कुछ फ़ैसले
और उसके बाद हौंसले
कहीं तो शुरुआत करनी ही होगी
इस बार यही तय किया है
इस बार यही तय किया है मैंने......
गुरुवार, 15 नवंबर 2012
ओ अंतरिक्ष!
ओ अंतरिक्ष!
ओ अंतरिक्ष! तुम क्या हो ?
क्या तुम मायावी जाल हो ?
या अनजान नाव की पाल हो ?
तुम प्रकाश हो, या अंधकार हो ?
तुम शुष्क हो या आर्द्र
हो
?
क्या तुम परमाणु हो अणु
के
?
लगते तुम कभी चंद्र तनु
से
क्या गति की तुम परिभाषा
हो
?
या शक्ति की तुम आशा हो ?
ओ अंतरिक्ष! तुम क्या हो ?
क्या तुम आकाश का
विस्तार हो
?
क्या प्रकृति का
चस्मत्कार हो
?
क्या पदार्थ का कोई
प्रहार हो
?
क्या ईश्वर का ही
सौंदर्य अपार हो
?
ओ अंतरिक्ष तुम क्या हो ?
कितना कठिन है तुम्हें
समझ पाना,
तुमहारे नियन्ता को हमने
न जाना
तुम गूढ़ रहस्य लघु ज्ञान
बुद्धि मेरी
कैसे जाना लघुतम कणों
में तुमने बस जाना ।
ओ मूर्ख मनुष्य! आँखें
खोल,
कर दृष्टिपात!
मैं ही तुम्हारे रतजगों
में प्रकाश बनकर आया!
मैंने ही तुम्हारी
धमनियों में उर्जा का रूप पाया!
मैं ही तुम्हारे
संकल्पों में दृढ़ता स्वरूप समाया!
मैं तुम्हारे कण-कण में
हूँ समाया!
तुममें मैं हूँ,
मुझ में तुम हो,
आँखें बंद कर हाथ बढ़ा कर,
मुझे बुलाओ,
मेरा स्पर्श करो,
मुझसे बातें करो,
मेरा अनुभव करो,
और......और
मेरेस्निग्ध सागर में
डूब जाओ......
मेरे स्निग्ध सागर में
डूब जाओ!!!!!!!
रविवार, 11 नवंबर 2012
HAPPY DIWALI !!!!!!
बन कर दीप तुम्हें जलना है
थक न जाएं कदम तुम्हारे
राही तुम्हें और चलना है,
घोर निराशा के अंधकार में
बन कर दीप तुम्हें जलना है ॥
कर्म तुम्हारा केवल पूजा
और न साथी कोई न दूजा,
श्रम-ईश्वर के माथे पर ही
बनकर सुमन तुम्हें चढ़ना है ॥
यह दुनिया तो कर्म क्षेत्र है
जिसमें बस आना-जाना है,
मत घबराओ कभी दुखी न हो
बनकर पवन तुम्हें बहना है ॥
घोर निराशा के अंधकार में
बन कर दीप तुम्हें जलना है॥
तुम्हीं राम हो तुम्हीं श्याम हो
तुम जन-जन के प्राण अमर हो,
आगे कदम बढ़ाते जाओ
कभी नहीं पीछे हटना है ॥
मन वाणी से एक रहो तुम
कभी न खोना अपना संयम,
मातृभूमि के सदा ऋणी हो
इतना ध्यान सदा रखना है ॥
घोर निराशा के अंधकार में
बन कर दीप तुम्हें जलना है॥
बनो त्याग की मूर्ति हमेशा
कुछ तो कर जाओ ऐसा,
जिससे याद तुम्हारी आए
क्योंकि तुम्हें मरकर जीना है ॥
थक न जाएं कदम तुम्हारे
राही तुम्हें और चलना है,
घोर निराशा के अंधकार में
बन कर दीप तुम्हें जलना है ॥
मंगलवार, 29 मई 2012
‘चिर परिचित संगिनी हूँ
‘चिर परिचित संगिनी हूँ
यात्रा पर जाने की सारी तैयारी कर
चुकी थी । सामान उठाकर मुख्य द्वार तक जाने ही वाली थी कि घर के कोने से एक आवाज़
आयी,“चिर परिचित संगिनी हूँ, मुझे भी साथ ले लो”.कदम यंत्रवत से उस कोने की ओर
मुड गए, जहां अनुभव का अथाह सागर, ज्ञान, मनोरंजन, अध्यात्म, संस्कृति, सभ्यता,आचार-विचार आदि कई लहरों को समेटे मुझे पुकार रहा
था। जी हाँ, यह मेरी पुस्तकों की दुनिया है । मैंने आलमारी
खोल एक पुस्तक को बैग में रख लिया । चार पंक्तियाँ यूँ ही गुनगुना गई………………………………………….
टी.वी.कंप्यूटर के युग
में क्यों बिसराएँ
गुज़रते वक्त की हर आवाज़ इनमें सुनें
हर पल कौन हमारे साथ चल सकता है ?
इसलिए बेहतर है कि हम पुस्तक को चुनें !
सच है मनुष्य ज़िन्दगी भर सीखता है
और इस प्रक्रिया में पुस्तकें अहम् भूमिका निभाती हैं । पुस्तकों की परम्परा
अत्यंत प्राचीन है । सबसे पहली पुस्तक वेद थे । वेद ‘विद’ धातु से उद् धृत है जिसका अर्थ ही
है ‘ज्ञान’ rigveda में उल्लिखित
गायत्री मंत्र आज भी घर-घर में उच्चारित होते हैं, उपनिषद में से ही हमारे राष्ट्रीय प्रतीक का पवित्र वाक्य ‘सत्यमेव जयते’ लिया गया । पहले विद्यार्थी गुरुओं से
सुन कर ही पाठ याद कर लेते थे जिसे ‘श्रुति’ कहा जाता था पर ज्ञान के इस अथाह सागर को याद रखना और फिर पीढ़ी दर पीढ़ी
संवाहित करने की आवश्यकता ने पुस्तकों को जन्म दिया । पुस्तकें मनुष्य की सबसे
अच्छी मित्र होती हैं । बड़े-बड़े विद्वान,महापुरुष अच्छे पाठक भी रहे हैं ।
कहा जाता है कि बादशाह अकबर महान, साक्षर नहीं था पर उसे
पुस्तकों का बहुत शौक था उसने एक विशाल पुस्कालय बनवाया और विद्वानों से पुस्तकें
पढ़वा कर ज्ञान अर्जित करता था.
आज इस कंप्यूटर, टी.वी
के युग में पुस्तकों के पाठक ज़्यादा नहीं हैं ये कहना पूर्णतः सही नहीं है क्योंकि
आज भी पढ़ने के शौक़ीन लोगों के घरों को पुस्तकों से सजा देखा जा सकता है । पढ़ने की
आदत अगर बचपन से ही विकसित की जाए तो यह उम्र भर साथ रहती है । इसके लिए सही उम्र
में अच्छी पुस्तकों का चयन आवश्यक है । इससे बच्चों में ज्ञान वृद्धि के साथ
कल्पनाशीलता , रचनात्मकता ,बौद्धिक
क्षमता, भाषा ज्ञान ,शब्द भंडार वृद्धि,
वर्तनी की शुद्धता, एकाग्रता, धैर्य जैसे कई
गुणों का विकास होता है । वैज्ञानिक शोधों से यह स्पष्ट हो गया है कि जिन बच्चों
में पुस्तकें पढ़ने की आदत है उनका I .Q . उन बच्चों से अधिक
होता है जो अपना समय टी.वी.या वीडियो
गेम खेलने में व्यतीत करते हैं । किशोरावस्था में अच्छी पुस्तकें पढ़ने से
मार्गदर्शन मिलता है और भविष्य की योजना बनाना आसान हो जाता है । एक उक्ति है ‘एक अच्छी पुस्तक वह है जो आशा के साथ खोली जाए और विश्वास के साथ बंद की
जाए”.
पुस्तकें यात्रा के दौरान, प्रतीक्षारत वक्त में , ऊब के क्षणों
में , शौक के रूप में, कई लम्हों में
साथी बन जाती हैं । नयी-नयी सभ्यता और विभिन्न संस्कृति से
हमारा परिचय कराती हैं, एकरसता और बोझिलता दूर करती हैं,
हमारे आत्मिक, सामाजिक, मानसिक
विकास में सहायक होती हैं, मस्तिष्क को सोचने की नयी दिशा
देती हैं
पुस्तक की सदा उसकी ज़ुबां में ……………………
मैं विश्व की हर आवाज़ को शब्दों की स्याही में डुबोती हूँ.
दिल को छूती, ज्ञान से भरपूर कई विधाओं को
संजोती हूँ
मैं पुस्तक हूँ, तुम्हारी चिर परिचित संगिनी,मुझे साथ ले लो……………
शैशव, युवावस्था, प्रौढ़
जीवन के विविध रंग उकेरती हूँ
हर तबके, हर संस्कृति, सभ्यता
के अनुभव को समेटती हूँ
मैं पुस्तक हूँ ……………………………………..साथ ले लो
मानव, पशु-पक्षी, पर्वत नदियों संग अठखेलियाँ करती हूँ
मुखौटे लगे चेहरों की भी शराफत बन रंगरेलियां रचती हूँ
मैं पुस्तक हूँ……………………………………….साथ ले लो
उत्थान पतन की लहरें,ऐतिहासिक स्मृति से उठाती
गिराती हूँ
गीले रेत पर पड़े अपने ही निशाँ बनाती और फिर मिटाती हूँ
मैं पुस्तक हूँ………………………………………….साथ ले लो
आज की, कल की, हर पल की गाथा
बन जुबां में सजती हूँ
सार्वभौमिक सत्य, वैज्ञानिक रहस्य का हर लम्हा
बुनती हूँ
मैं पुस्तक हूँ ………………………………………साथ ले लो
गंगोत्री से निकली यात्रा को, मैं ही गंगासागर ले
चलती हूँ
राजा रानी के किस्सों में समा बच्चों के सपनों में पलती हूँ
मैं पुस्तक हूँ…………………………………………साथ ले लो
कभी सौंदर्य कुदरत का, कभी ज्ञान के सागर में
डुबोती हूँ
शब्दों के बादल पर बिठा, भावों की बारिश से भी
भिगोती हूँ
मैं पुस्तक हूँ……………………………साथ ले लो.
कभी हंसाती ,कभी रुलाती, कभी संजीदा, विचारमग्न करती हूँ
मस्तिष्क के बंद पट को, चुपके-चुपके
अहिस्ता से खोलती हूँ
मैं पुस्तक हूँ…………………………….साथ ले लो
भूल जाना ना मुझे कभी, दुःख सुख हर लम्हे में साथ
देती हूँ
जहां कोई नहीं तुम्हारा, सिवा तन्हाई के,अपना हाथ देती हूँ
मैं पुस्तक हूँ ……………………………………….साथ ले लो
इस कंप्यूटर युग में तो जैसे, बनती जा रही मैं
डूबती कश्ती हूँ
फट जाऊं, गल जाऊं फिर भी, रहूँ
स्मृति में, एक ऐसी हस्ती हूँ
मैं पुस्तक हूँ……………………………साथ ले लो
कहा गया है कि ‘पुस्तकें इनसान की सबसे अच्छी
दोस्त होती हैं।’ साथ ही ये ज्ञान का
खजाना होती हैं, दिमाग का खाद्य होती हैं। एक विचारक ने तो यहां तक कहा है कि ‘अन्य चीजें बल से
छीनी या धन से खरीदी जा सकती हैं मगर ज्ञान सिर्फ अध्ययन से ही प्राप्त किया जा
सकता है।" कुछ मां-बाप पढ़ाई
के नाम पर सिर्फ पाठ्य पुस्तकों को ही
महत्व देते हैं और अन्य पुस्तकों, पत्रिकाओं या दैनिक समाचार
पत्र आदि यदि बच्चे पढ़ें तो उन्हें रोकते
हैं । मगर सच यह है कि ऐसा करके वे बच्चे के विकास की गति को ही अवरुद्ध करते हैं। बच्चा तो कच्ची मिट्टी के घड़े के
सामान है उसे जो रूप हम देंगे वह उसी में
ढल जायेगा। पठन-पाठन के कुछ लाभ निम्न प्रकार हैं :
पुस्तकों से ज्ञान बढ़ता है : पुस्तकें ज्ञान का भंडार होती हैं । अच्छी व ज्ञानवर्धक
पुस्तकें पीढिय़ों से संचित ज्ञान एवं अनुभव को अगली पीढिय़ों तक पहुंचाती हैं।
ज्ञान बांटने से बढ़ता है, बच्चे पुस्तक में जो पढ़ते हैं
उसे अपने अन्य साथियों के साथ बांटते हैं, जिससे ज्ञान का
आदान-प्रदान होकर उनके ज्ञान कोष में वृद्धि होती है।
पुस्तकें जिज्ञासा को बढ़ाती भी हैं और उसे शांत भी करती हैं।
विचार क्षमता बढ़ती है : जो कुछ पढ़ा जाता है उस पर चिंतन-मनन
स्वाभाविक प्रक्रिया है तथा इससे मस्तिष्क की वैचारिक क्षमता में वृद्धि होती है।
कहा भी गया है कि विचारों से ही मनुष्य के जीवन की राह बनती है। बच्चा किस दिशा
में बढ़ रहा है यह उसके विचारों से ही संचालित होता है।
तर्क क्षमता बढ़ती है । बच्चे पढ़ते हैं तो उस विषय पर अपने साथियों के साथ या
अपने बड़ों के साथ विचार-विनिमय करते हैं, जिससे उनकी तर्क क्षमता का विकास होता है।
आत्मविश्वास बढ़ता है : कहा जाता है कि पंखों की उड़ान से भी बढ़कर हौसलों की उड़ान
होती है। अच्छी किताबें बच्चों में आत्मविश्वास जगाती हैं, उनका
हौसला बढ़ाती हैं।
अकेलापन अनुभव नहीं होता : पुस्तकों को सबसे अच्छी मित्र माना गया है। आज जब परिवार छोटे-छोटे होने लगे हैं अकेलेपन का संकट बचपन से ही झेलना पड़ रहा है। ऐसे में
अच्छी पुस्तकों से बढिय़ा साथी कोई नहीं मिल सकता। अत: अपने
बच्चों को पुस्तकों से दोस्ती करने की आदत डालिये।
सही मार्गदर्शन मिलता है : पुस्तकों में असीमित शक्ति छिपी होती है जो प्रेरणा एवं
मार्गदर्शन दोनों देती हैं। यही कारण है कि आम भारतीय घरों में भी रामायण, गीता आदि ग्रंथों का नित पाठ करने की परंपरा है। धार्मिक उत्सवों पर भी
पाठ रखे जाते हैं। इनका अभिप्राय: यही है कि सद् शिक्षाओं को
ग्रहण कर अच्छे रास्ते पर चलकर सच्चे इनसान बना जाए । महापुरुषों की जीवनियां
बच्चों के लिए प्रेरणा स्रोत बनती हैं। बच्चे अत्यधिक टीवी देखने एवं कंप्यूटर
प्रयोग से होने वाली हानियों से बच जाते हैं।
अभिरुचियों का विकास होता है : हर बच्चे की प्रकृति अलग-अलग होती है जब
बच्चा किताबें पढ़ता है तो उसके पात्र विभिन्न प्रकार की रुचियों के स्वामी होते
हैं। बच्चे उनसे प्रभावित होकर अपने भीतर छिपी प्रतिभा को बाहर लाने में सहज रूप
से सफल होते हैं, जिससे उनके कौशल उन्नयन में माता-पिता को
भी सहायता मिलती है।
सस्ता साधन है : पुस्तकें
मनोरंजन और ज्ञानवर्धन का सस्ता एवं सहज सुलभ साधन हैं। अपने आस-पास स्थित पुस्तकालय के सदस्य बनकर नि:शुल्क या
नाममात्र शुल्क पर पुस्तकें पढऩे के लिए प्राप्त की जा सकती हैं।
अनुशासन आता है : किताबें
पढ़ते हुए एकाग्रता बढ़ती है, जिससे शोर एवं उछल-कूद जैसी शरारतों से बचकर बच्चा अनुशासन में ढलता चला जाता है। हम जानते हैं कि अनुशासन सफलता की
प्रथम सीढ़ी है। सफदर हाशमी ने कहा है :
किताबें करती हैं बातें
बीते जमाने की, दुनिया की, इंसानों की
आज की, कल की, एक-एक पल की
खुशियों की, गमों की, फूलों की, बमों की
जीत की, हार की, प्यार की,
मार की,
क्या तुम नहीं सुनोगे इन किताबों की बातें?
किताबें कुछ कहना चाहती हैं तुम्हारे पास रहना चाहती हैं।
अभिप्राय: यही है कि अपने बच्चों को अच्छी पुस्तकों से मिलवाकर उन्हें
जीवन में कुछ बनने को प्रेरित किया जा सकता है। महात्मा गांधी हों या अब्राहम
लिंकन जिस रूप में हम उन्हें याद करते हैं इसमें अच्छी पुस्तकों का योगदान
सर्वाधिक है।
'आज' 23.04.2021
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