मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

अग्नि-कविता

अग्नि-कविता

एक अग्नि-कविता तुम्हारे लिए
इसे दीये की भांति सहेज लेना
एक लौ-हृदय जो शायद
तुम्हारा हृदय भी लौ कर दे
अग्नि से सर्वस्व भर दे
उस नाड़ी में जिसमें प्रज्ज्वलित हो
रुधिर भी
उन साँसों में जिनमें यज्ञ का
आह्वान उठे
उस अग्नि-कविता को अंजुरि में
सहेज लेना
जब तुम्हारा मुख दीप्तिमान हो
तुम्हारा प्रकटन कान्ति
उस लौ-हृदय को भीतर
आत्मसात कर लेना
इन चिंगारियों को कुछ क्षण
अंदर सुलगने देना
एक अग्नि-कविता तुम्हारे लिए
एक अग्नि-कविता तुम्हारे लिए.....


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