मंगलवार, 11 मई 2021

                                 सबल-संप्रेषण                                           
आज सफलता का राज़ मुख्यतः इस बात में छिपा होता है कि आप अपनी बात कितनी कुशलता से सही स्थान तक पहुंचाते हैं.सूचना-युग ने हमें अपनी बात दूसरों को समझाने के नित नए मंत्र सिखाए हैं.संप्रेषण ने कला ,विज्ञान और तकनीक को विलक्षण पंख प्रदान किए हैं. "जानकर मानने और मानकर जानने " दोनों विकल्प खोले हैं . प्रेषक और गृहीता- दोनों पक्षों के बीच फैले सूत्रों को सबल, सघन और तेज़ किया है . उनमें आकर्षण और जीवंतता भरी है.संप्रेषण के वाचिक दृश्यों का विस्तार हुआ है . इसे बातचीत की संज्ञा दी जा सकती है.
सफल बातचीत के लिए शब्दों के हिज्जे , उच्चारण , उत्पत्ति और प्रयोग, चारों क्षेत्रों में पकड़ बनाने की आवश्यकता है.यदि सही शब्द, सही आदमी से ,सही समय पर तथा सही प्रकार से कहा जाए तो शब्द में ब्रह्म की शक्ति आ जाती है . यदि हित-मित-प्रिय हो और उसका तर्ज़े-बयां या अंदाज़े-बयां भी सरस हो तो वह अजब धमक-हनक-खनक-दमक और इकबाल पैदा कर सकता है. यदि आप अपनी बात संक्षिप्त , स्पष्ट , सबल और सरल शब्दों में कहते हैं, तो ही वह अपना प्रभाव डालती है.
बोलते समय निपुणता से चुने गए मौन अंतराल , जन-संचार को बेहद असरदार बना सकते हैं . सूचक और गुणार्थक शब्दों में गुणार्थक वितरण की पकड़ अधिक सक्षम होती है. जैसे जब राम-वशिष्ठ संवाद के अंत में वशिष्ठ मौन हो जाते हैं और राम पूछते हैं कि उन्हें उनके प्रश्न का उत्तर नहीं मिला तो वशिष्ठ कहते हैं दे तो दिया.
संप्रेषण का असली आनंद भाषा के अंतिम छोर तक पहुंचना और वहां खड़े होकर जाने-अनजाने परिदृश्य की झलकियों से आनंद-विभोर होना भी है.उन पलों में डगर पर झिलमिलाता या झनझनाता कोई शब्द नए ज्ञानोदय का सूत्र भी बन सकता है.सूचना का प्रवाह कब , कैसे , कहां और कितना रुकता है तथा इससे कितनी हानि होती है, यह समझना भी अत्यंत मूल्यवान है.उपयोगी तथ्यों के सूचना - प्रसार की रुकावट से गरीबी बढ़ती है.इसलिए संप्रेषण की आधुनिकतम विधाओं का तीव्रतम विकास ज़रूरी है. मात्र मौखिक संप्रेषण से कभी-कभी काम नहीं बनता हैं . मच्छर कैसे मारा जाए?इस पर एक पत्रिका के एक रोचक विज्ञापन में इस प्रकार की हिदायतें थीं - दोनों पन्ने खुले रखिए,मच्छर को पन्ने के ऊपर सही स्थान पर आने दीजिए,पत्रिका को फट से बंद करिए,पत्रिका को खोलिए , पन्ने को साफ़ करिए और दूसरे मच्छर की प्रतीक्षा कीजिए............या हैक्सिट (दवा का नाम) कीजिए.इस विज्ञापन में संप्रेषण का नयापन, चातुर्य, प्रभाव,याद रह जाने का गुण और खेल का अजूबा पैकेज है.
अतः जीवन की गतिशीलता को ध्यान में रखते हुए जब आदमी से आदमी की दूरी बढ़ती जा रही है, संप्रेषण की कला में यदि विज्ञान और तकनीक भी घुल-मिल जाए तो सटीक और जीवंत "बात" और "चीत" से सुखी मानव-जीवन की नींव रखी जा सकेगी.

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