जो बादलों में उतर रही गगन से आकर,
जो पर्वतों पर बिखर रही है सफ़ेद चादर,
वही तो मैं हूँ.... वही तो मैं हूँ....
जो इन दरख्तों के सब्ज़ पत्तों पे डोलती है,
जो ओस बनकर हर मौसम को खेलती है,
वही तो मैं हूँ.....वही तो मैं हूँ....
बुधवार, 2 जनवरी 2013
न जन्म कुछ , न मृत्यु कुछ, बस इतनी सी बात है ! किसी की आँख खुल गई किसी को नींद आ गई !!
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