रविवार, 2 मार्च 2014

कागा सब तन खाइयो..

कागा सब तन खाइयो..

“कागा सब तन खाइयो…” बचपन से ये पंक्तियाँ सुनती आई हूँ लेकिन पहले इनके अर्थ समझ नहीं आते थे| कागा यानि ‘कौआ’ से कोई क्यों कहता है कि:

कागा सब तन खाइयो मेरा चुन चुन खाइयो मांस , 

दो नैना मत खाइयो मोहे पिया मिलन की आस…

लेकिन जैसे-जैसे जिन्दगी बहती गयी और रंग दिखाती गयी इन पंक्तियों के मैंने खुद ही अर्थ खोजे और खुद ही इन्हें समझने की कोशिश की| मुझे लगता है की कागा यानि दुनियाँ के वे तमाम रिश्तें जो स्वार्थ, जरुरत पर टिके हैं जो आपसे हमेशा कुछ ना कुछ लेने की बाट ही जोहते हैं|

कभी वे बहन-भाई , माँ-पिता बन कर तो कभी पति-पत्नी दोस्त या संतान बन कर आपको ठगते हैं, उनके मुखौटों के पीछे एक कागा ही होता है जो अपनी नुकीली चोंच से हमारे वजूद को, हमारे अस्तित्व को व्यक्तित्व को, हमारे स्व को, निज को खाता रहता है|

हम लाख छुड़ाना चाहे खुद को वो हमें नहीं छोड़ता| वो हमारी देह को हमारे तन को खाता रहता है चुन- चुन कर माँस का भक्षण करता रहता है। वो कई बार अलग-अलग नामों से, अलग-अलग रूपों में हमसे जुड़ता है और धीरे-धीरे हमें ख़तम किये जाता है|

ये तो हुआ कागा और हम कौन हैं? सिर्फ देह? सिर्फ भोगने की वस्तु? किसी की जरुरत के लिए हाजिर सामान की डिमांड ड्राफ्ट?

क्या है हम और पिया कौन है?

जिसके मिलने की चाह में हम ज़िंदा हैं? कागा के द्वारा सम्पूर्ण रूप से तन को खा जाने का भी हमें ग़म नहीं और उससे विनती की जा रही है कि “दो नैना मत खाइयों मोहे पिया मिलन की आस” --कौन है ये पिया यक़ीनन वो परमात्मा ही होगा जिसकी तलाश में ये दो नैना टकटकी लगाए हैं की अब बस बहुत हुआ आ जाओ और सांसों के बंधन से देह को मुक्त करो|

ये कागा उस विरहणी का मालिक भी है जिसने उसे बंदनी बना रखा है और जो अपने प्रियतम की आस में आँखों को बचाए रखने की विनती करती है कि जब तक प्रियतम नहीं मिलते उसके प्राण नहीं जाएँगे| कितना दर्द है और गहरे अर्थ भी है इन पंक्तियों में कागा तू जी भर कर इस भौतिक देह को खाले| चुन चुन कर तू इसका भोग कर ले मगर दो नैना छोड़ देना क्योंकि इनको पिया मिलन की आस है और कागा क्या करता है वो अपना काम बखूबी करता है| अपनी जरुरत अपने अवसर और अपने सुख के लिए वो मांस का भक्षण किये जाता है उसे विरहणी की आखों में, या मन में झांकने की फुर्सत नहीं और आखों से उसे क्या सरोकार? वो तो देह का सौदागर है ना और सौदागरों ने हमेशा अपने लाभ देखे हैं| किसी की आँखों में बहते दर्द नहीं देखे ना हीं पराई पीर ही देखी । इसीलिए वो कह उठी होगी कि “कागा सब तन खाइयो...”

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