रविवार, 2 मार्च 2014

मैं जो हूँ

मैं जो हूँ 



वस्तुतः
मैं जो हूँ
मुझे वहीं रहना चाहिए
यानी
वन का वृक्ष
खेत की मेड़
नदी की लहर
दूर का गीत
व्यतीत
वर्तमान में
उपस्थित भविष्य में
मैं जो हूँ मुझे वहीं रहना चाहिए

तेज़ गर्मी
मूसलाधार वर्षा
कड़ाके की सर्दी
खून की लाली
दूब का हरापन
फूल की जर्दी
मैं जो हूँ
मुझे अपना होना
ठीक ठीक सहना चाहिए

तपना चाहिए
अगर लोहा हूँ
हल बनने के लिए

बीज हूँ
तो गड़ना चाहिए
फल बनने के लिए

मैं जो हूँ
मुझे वह बनना चाहिए
धारा हूँ अन्तः सलिला
तो मुझे कुएँ के रूप में
परोपकारी होना चाहिए

अगर मैं आसमान हूँ
तो मुझे सबको
विस्तार देना चाहिए

मगर मैं
कब से ऐसा नहीं
कर रही हूँ
जो हूँ
वही होने से डर रही हूँ **********

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