जो बादलों में उतर रही गगन से आकर,
जो पर्वतों पर बिखर रही है सफ़ेद चादर,
वही तो मैं हूँ.... वही तो मैं हूँ....
जो इन दरख्तों के सब्ज़ पत्तों पे डोलती है,
जो ओस बनकर हर मौसम को खेलती है,
वही तो मैं हूँ.....वही तो मैं हूँ....
शुक्रवार, 19 नवंबर 2010
सीमा निर्धारण
सीमा निर्धारण आवश्यक जब मन में बसे विकार, सीमा रहित प्रत्यक्ष है विशाल गगन निर्विकार..............
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