रविवार, 7 नवंबर 2010

DEEPAWALI

पर्वों का पुञ्ज दिवाली

धनतेरस, काली चौदस, दिवाली, नूतनवर्ष और भाईदूज.... इन पर्वों का पुञ्ज माने दिवाली के त्योहार।
शरीर में पुरुषार्थ, हृदय में उत्साह, मन में उमंग और बुद्धि में समता.... वैरभाव की विस्मृति और स्नेह की सरिता  का प्रवाह... अतीत
के अन्धकार को अलविदा और नूतनवर्ष के नवप्रभात का सत्कार... नया वर्ष और 
नयी बात.... नया उमंग और नया साहस... त्याग, उल्लास, माधुर्य और प्रसन्नता
बढ़ाने के दिन याने दीपावली का पर्वपुञ्ज।
 लक्ष्मी
उसी को प्राप्त होती है जो पुरुषार्थ करता है, उद्योग करता है। 
आलसी को 
लक्ष्मी त्याग देती है। 
जिसके पास लक्ष्मी होती है उसको बड़े-बड़े लोग मान
देते हैं। 
हाथी लक्ष्मी को माला पहनाता है।  
लक्ष्मी
के पास उल्लू दिखाई देता है। 
इस उल्लू के द्वारा निर्दिष्ट है कि निगुरों
के पास लक्ष्मी के साथ ही साथ अहंकार का अन्धकार भी जाता है। 
उल्लू 
सावधान करता है कि सदा अच्छे पुरुषों का ही संग करना चाहिए। 
हमें सावधान करें, डाँटकर सुधारें ऐसे पुरुषों के चरणों में जाना चाहिए। 
हम
उन ऋषियों को धन्यवाद देते हैं कि जिन्होंने दिवाली जैसे पर्वों का आयोजन
करके मनुष्य से मनुष्य को नजदीक लाने का प्रयास किया है, मनुष्य की 
सुषुप्त शक्तियों को जगाने का सन्देश दिया है। 
जीवात्मा का 
परमात्मा से एक होने के लिए भिन्न-भिन्न उपाय खोजकर उनको समाज में, 
गाँव-गाँव और घर-घर में पहुँचाने के लिए उन आत्मज्ञानी महापुरुषों ने 
पुरुषार्थ किया है। 
उन महापुरुषों को आज हम हजार-हजार प्रणाम करते हैं। 
विश्वास रखोः आने वाला कल आपके लिए अत्यंत मंगलमय होगा। 
सदैव प्रसन्न रहना ईश्वर की सर्वोपरि भक्ति है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें