जो बादलों में उतर रही गगन से आकर, जो पर्वतों पर बिखर रही है सफ़ेद चादर, वही तो मैं हूँ.... वही तो मैं हूँ.... जो इन दरख्तों के सब्ज़ पत्तों पे डोलती है, जो ओस बनकर हर मौसम को खेलती है, वही तो मैं हूँ.....वही तो मैं हूँ....
गुरुवार, 11 नवंबर 2010
INTENSE LOVE
विरह में दर्द मिलन में राग
कहें क्या हम इसको अनुराग,
प्रेम के हर बंधन को तोड़
मीत सब दूर रहें है भाग,
प्रीत क्या इसको कहते हैं ?
अजनबी अपने बनते हैं।
समय के परिवर्तन से मित्र
न खींचें अपने मन के चित्र
भरोसा जिन पर किया असीम
उन्हीं ने धोखा दिया विचित्र
रीत क्या इसको कहते हैं ?
प्रीत क्या इसको कहते हैं ?
कभी इस नगर कभी उस गांव
निरंतर रुकें न चलते पांव
यही क्रम जीवन है गतिशील
राह में धूप मिले या छांव
सृअजन के फूल खिलते हैं
गीत सब पीड़ा सहते हैं।
अजनबी अपने बनते हैं
सदा अपने ही रहते हैं ।
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